गुरु नानक जिन्हे बाबा नानक भी कहा जाता है, सिख धर्म के संस्थापक थे और दस सिख गुरुओं में से पहले गुरु है। उनका जन्म दुनिया भर में कतक पूरनमाशी, यानी अक्टूबर-नवंबर में गुरु नानक गुरुपर्व के रूप में मनाया जाता है। आज हम बाबा नानक के अनमोल दोहे पढ़ेंगे जो नीच्चे लिखे है।
बाबा नानक के अनमोल दोहे
1 एक ओंकार सतनाम, करता पुरखु निरभऊ। निरबैर, अकाल मूरति, अजूनी, सैभं गुर प्रसादि ।।
2 हुकमी उत्तम नीचु हुकमि लिखित दुखसुख पाई अहि। इकना हुकमी बक्शीस इकि हुकमी सदा भवाई अहि ॥
3 सालाही सालाही एती सुरति न पाइया। नदिआ अते वाह पवहि समुंदि न जाणी अहि ॥

गुरु नानक देव जी के दोहे
4 पवणु गुरु पानी पिता माता धरति महतु। दिवस रात दुई दाई दाइआ खेले सगलु जगतु ॥
5 धनु धरनी अरु संपति सगरी जो मानिओ अपनाई। तन छूटै कुछ संग न चालै, कहा ताहि लपटाई॥
6 दीन दयाल सदा दु:ख-भंजन, ता सिउ रुचि न बढाई। नानक कहत जगत सभ मिथिआ, ज्यों सुपना रैनाई॥
7 मन मूरख अजहूं नहिं समुझत, सिख दै हारयो नीत। नानक भव-जल-पार परै जो गावै प्रभु के गीत॥
8 अपने ही सुखसों सब लागे, क्या दारा क्या मीत॥ मेरो मेरो सभी कहत हैं, हित सों बाध्यौ चीत। अंतकाल संगी नहिं कोऊ, यह अचरज की रीत॥

गुरु नानक देव जी के दोहे
9 जेती सिरठि उपाई वेखा, विणु करमा कि मिलै लई।
10 नानक गुरु संतोखु रुखु धरमु फुलु फल गिआनु। रसि रसिआ हरिआ सदा पकै करमि सदा पकै कमि धिआनि॥
11 धंनु सु कागदु कलम धनु भांडा धनु मसु। धनु लेखारी नानका जिनि नाम लिखाइआ सचु॥
12 मेरे लाल रंगीले हम लालन के लाले। गुर अलखु लखाइआ अवरु न दूजा भाले॥

गुरु नानक देव जी के दोहे
13 साचा साहिबु साचु नाइ भाखिआ भाउ अपारु। आखहि मंगहि देहि देहि दाति करै दातारु॥
14 सतिगुर भीखिआ देहि मै तूं संम्रथु दातारु। हउमै गरबु निवारीऐ कामु क्रोध अहंकारु॥
15 तीरथि नावा जे तिसु भावा, विणु भाणे कि नाइ करी।
16 गुरा इक देहि बुझाई। सभना जीआ का इकु दाता, सो मैं विसरि न जाई।
17 जे हउ जाणा आखा नाही, कहणा कथनु न जाई।

गुरु नानक देव जी के दोहे
18 गुरमुखि नादं गुरमुखि वेदं, गुरमुखि रहिआ समाई। गुरू ईसरू गुरू गोरखु बरमा, गुरू पारबती माई।
19 जिनि सेविआ तिनि पाइआ मानु। नानक गावीऐ गुणी निधानु।
20 धनु धरनी अरु संपति सगरी जो मानिओ अपनाई। तन छूटै कुछ संग न चालै, कहा ताहि लपटाई॥ दीन दयाल सदा दु:ख-भंजन, ता सिउ रुचि न बढाई। नानक कहत जगत सभ मिथिआ, ज्यों सुपना रैनाई॥
21 पवणु गुरु पानी पिता माता धरति महतु। दिवस रात दुई दाई दाइआ खेले सगलु जगतु ॥

गुरु नानक देव जी के दोहे
22 मन मूरख अजहूं नहिं समुझत, सिख दै हारयो नीत। नानक भव-जल-पार परै जो गावै प्रभु के गीत॥
23 अपने ही सुखसों सब लागे, क्या दारा क्या मीत॥ मेरो मेरो सभी कहत हैं, हित सों बाध्यौ चीत। अंतकाल संगी नहिं कोऊ, यह अचरज की रीत॥
24 करमी आवै कपड़ा। नदरी मोखु दुआरू। नानक एवै जाणीऐ। सभु आपे सचिआरू।

25 अंम्रित वेला सचु नाउ वडिआई वीचारू।
26 तीरथि नावा जे तिसु भावा। विणु भाणे कि नाइ करी॥ जेती सिरठि उपाई वेखा विणु करमा कि मिलै लई॥
27 कीटा अंदर कीटु करि, दोसी दोसु धरे। ‘नानक’ निर्गुणी गुणु करे, गुणवंतिया गुणु दे॥
28 हुकमैं अंदरि सभु को बाहरि हुकम न कोइ। नानक हुकमै जे बुझै त हउमै कहै न कोइ॥

गुरु नानक देव जी के दोहे
29 नानक नाम जहाज है, चढ़े सो उतरे पार। जो शरधा कर सेव दे, गुर पार उतारन हार॥
30 गुरु दाता गुरु हिवै घरु गुरु दीपकु तिह लोइ। अमर पदारथु नानका मनि मानिऐ सुख होई॥
31 दिहटा नूर मुहम्मदी दिहटा नबी रसूल। नानक कुदरत देखकर सुदी गयो सब भूल॥

32 आपे माछी मछुली, आपे पाणी जालु। आपे जाल मणकड़ा, आपे अंदर लालु॥
33 पहिला नाम खुदा का, दूजा नाम रसूल। तीजा कलमा पढ़ि नानका, दरगाह परे कबूल॥
34 सतिगुर भीखिआ देहि मै तूं संम्रथु दातारु। हउमै गरबु निवारीऐ कामु क्रोध अहंकारु॥
35 मन मूरख अजहूं नहिं समुझत, सिख दै हारयो नीत। नानक भव-जल-पार परै जो गावै प्रभु के गीत॥9॥