Amazing 100+ Kalidas Ke Dohe In Hindi

प्रसिद्ध संस्कृत कवि, नाटककार और दार्शनिक कालिदास को व्यापक रूप से प्राचीन भारत के महानतम साहित्यकारों में से एक माना जाता है। उनके कार्यों का भारतीय साहित्य पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ा है, और उनके दोहे (दोहे) अभी भी जनता के बीच लोकप्रिय हैं। इस लेख में, हम Kalidas Ke Dohe और आज की दुनिया में उनकी प्रासंगिकता पर चर्चा करेंगे।

Kalidas Ke Dohe

  • जीवन का मतलब तो आना और जाना है
  • जैसे तिल में तेल है, ज्यों चकमक में आग
    तेरा साईं तुझ में है, तू जाग सके तो जाग
  • हर दिन यहां नया है, हर रात नया सवेरा
    इस नए दिन की शुरुआत कर दे, मन में संकल्प अपना भर दे
  • मन के हारे हार है, मन के जीते जीत
    मन के पाप को धोये, मन के पवित्र करे मीट
  • जैसे भोजन को स्वाद अनुसर, ही लागू होता है भोजन
    तैसे मन को स्वाद अनुसर, ही लागू होता है मंथन
  • सज्जन पुरुष ऐसे होते हैं जो दूसरों की उम्मीदों को ठीक उसी तरह से बिना कुछ कहे ही पूरा कर देते हैं, जैसे की सूर्य हर घर में अपना प्रकाश फैला देता है।
  • सूर्योदय होते समय जैसे सूर्य लालिमायुक्त होता है, ठीक उसी तरह सूर्यास्त के समय भी सूर्य उतना ही लाल होता है, वैसे ही एक महान और धैर्यवान पुरुष अपने सुख-दुख दोनों परिस्थितियों में एक समान रहता है।
  • अगर किसी काम को करने के बाद आप संतुष्ट होते हैं, और आपको इसका अच्छा परिणाम मिलता है, तो निश्चय ही उस परिश्रम की थकान याद नहीं रहती है।
  • किसी भी व्यक्ति का अवगुण नाव की पेंदी में एक छेद की तरह होता है, जो चाहे छोटा हो अथवा बड़ा हो नाव को डुबो ही देता है, ठीक उसी तरह किसी भी बुरे व्यक्ति की बुराइयां उसे खत्म कर देती हैं।
  • पृथ्वी पर तीन अनमोल रत्न जल, अन्न और सुभाषित है, लेकिन जो अज्ञानी पत्थरों के टुकड़ों को ही रत्न कहते हैं।
  • दान-पुण्य सिर्फ परलोक में ही सुख देता है जबकि एक योग्य संतान की सेवा से लोक और परलोक दोनों में ही परम सुख की प्राप्ति होती है।
  • कोई भी वस्तु पुरानी हो जाने पर अच्छी नहीं हो जाती और न ही कोई काव्य नया होने से बेकार हो जाता है, वहीं व्यक्ति के अच्छे गुणों और स्वभाव से ही उसके अच्छे या बुरे की पहचान होती है, अर्थात गुणी व्यक्ति ही हर जगह आदर-सम्मान पाता है।
  • एक सच्चा और धैर्यवान पुरुष वही होता है, जो कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी पूरे साहस के साथ धैर्य से काम लेता है और अपने मार्ग से विचलित नहीं होता है।
Amazing 100+ Kalidas Ke Dohe In Hindi

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महाकवि कालिदास के दोहे

  • आज अच्छी तरह से जीने वाले हर कल को खुशियों की याद दिलाते हैं और हर आने वाले कल को एक उम्मीद की निशानी बनाते हैं। 
  • जिस प्रकार जब सूरज निकलता है तब लालिमा युक्त होता है और अस्त होता है तो भी लालिमायुक्त होता है। इसी प्रकार महान पुरुष भी सुख और दुःख में एकरूपता रखता है।
  • जिस व्यक्ति की आखें दर्द कर रही हैं उसे बहुत सुन्दर दीपशिखा भी अच्छी नहीं लगती है उसी प्रकार जो व्यक्ति हृदय से दुखी है वो सुख की अनुभूति नहीं कर सकता अर्थात उसे कही भी ख़ुशी नहीं मिलेगा । 
  • फल आने पर पेड़ झुक जाते हैं,  वर्षा के समय बादल झुक जाते हैं। सम्पति आने पर सज्जन लोग विनम्र हो जाते हैं – परोपकारियों का स्वाभाव ऐसा ही है। 
  • मन को विचलित करने वाली कितनी भी परिस्थितियाँ क्यों न हों पर एक धैर्यवान पुरुष कभी भी विचलित नहीं होता। 
  • जिस प्रकार बड़ा छेद हो या छोटा वो नाव को डुबो देता है उसी तरह  दुष्ट व्यक्ति की दुस्टता उसे बर्बाद कर देती है। 
  • विश्व महापुरुष को खोजता है न की महापुरुष विश्व को। 
  • काम की समाप्ति यदि संतोषजनक हो तो परिश्रम की थकान याद नहीं रहती। 
  • वृक्ष के समान बनों जो कड़ी गर्मी झेलने के बाद भी सभी को छाया देता है। 
  • प्रत्येक व्यक्ति की रुचि एक दूसरे से भिन्न होती है। 
  • आह, मेरी इच्छाएं आशा बन जाती हैं।
  • जल आग की गर्मी से गर्म हो जाता है पर वास्तव में उसका स्वाभाव तो  ठंडा ही होता है। 
  • हंस पानी मिले दूध मे से दूध पी लेता है और पानी छोड़ देता है।
  • कोई वस्तु पुरानी होने से अच्छी नहीं हो जाती और न ही कोई काव्य नया होने से निंदनीय हो जाता है। 
  • नम्रता के संसर्ग से ऐश्वर्य की शोभा बढ़ती है।
  • गुण से ही व्यक्ति की पहचान होती है, गुनी व्यक्ति सब जगह अपना आदर करा लेता है। 
  • दान पुण्य केवल परलोक में सुख देता है पर योग्य संतान अपनी सेवा द्वारा इस लोक और परलोक दोनों में ही सुख देती है। 
  • सज्जन पुरुष बिना कहे ही दूसरों का भला कर देते हैं जिस प्रकार सूर्य घर घर जाकर प्रकाश देता है। 
  • इस पृथ्वी पर तीन रत्न हैं ; जल, अन्न और सुभाषित, लेकिन अज्ञानी पत्थरों के टुकड़ों को ही रत्न कहते हैं। 

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Mahakavi Kalidas Quotes

  • दुखती आँखों को सामने दीपशिखा अच्छी नहीं लगती।
  • अनर्थ अवसर की ताक में रहते हैं।
  • दुष्ट अपकार से नहीं, उपकार से ही शांत रहता है।
  • जितेन्द्रिय पुरुष के मन में विघ्न कर वस्तुएँ थोडा भी क्षोभ लाभ नहीं कर सकतीं।
  • अवगुण नाव की पेंदी में छेद के समान है, जो चाहे छोटा हो या बड़ा, एक दिन उसे डुबो देगा।
  • वृक्षारोपण आपके सिर पर गर्मी बढ़ाता है। कार्य अपनी छाया से औरों को ताप से प्रज्वलित करता है।
  • सभी स्कोर पुराना ही प्रदर्शन नहीं होता।
  • जल तो आग की गर्मी पाकर ही गर्म होती है। उसका अपना स्वभाव तो ठंडा ही होता है।
  • वास्तविक धीर पुरुष ही होते हैं, वास्तव में ध्यान में रखते हुए विकार वाले लोग भी स्थिर नहीं होते हैं।
  • कोई वस्तु पुरानी होने से अच्छी नहीं होती और न कोई काव्य नया होने से ही निंदनीय हो जाता है।
  • जो स्वयं सुंदर है, उसकी सुन्दरता किसी अन्य वस्तु से नहीं बढ़ती।
  • दुःख या सुख किसी पर सदा ही नहीं रहते। ये तो पहिए के क्रिएटर्स के फायदे कभी नीचे, कभी ऊपर यों ही होते हैं।
  • शत्रु के छिद्र दोष या कमजोरी को देखकर उसी पर आघात करने से विजय प्राप्त होती है।
  • सभी व्यक्ति कठिनता पर विजय प्राप्त कर सकते हैं, सभी सबका अपमान, सभी कार्यों की पूर्ति का प्रयास करें और सभी स्थितियों पर सबकी यत्न करें।
  • जो सुख-दुःख के सामने होता है, वह सामान्य सुख से अधिक सुखमय होता है।
  • जो महापुरूषों की निंदा करता है, वही नहीं अपितु जो उस फैसले को सुनता है, वह भी पाप का भागी होता है।
  • उदय होते समय सूर्य लाल होता है और अस्त समय भी होता है। उसी संपत्ति हो या विपत्ति; महँ पुरुषों में एकरूपता होती है।
  • काम की समाप्ति संतोषपूर्ण हो तो परिश्रम की थकान याद नहीं रहती।

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Amazing 100+ Kalidas Ke Dohe In Hindi

Kalidas Poems

कालिदास, सच-सच बतलाना!
इंदुमती के मृत्युशोक से
अज रोया या तुम रोए थे?
कालिदास, सच-सच बतलाना!

शिवजी की तीसरी आँख से
निकली हुई महाज्वाला में
घृत-मिश्रित सूखी समिधा-सम
कामदेव जब भस्म हो गया
रति का क्रंदन सुन आँसू से
तुमने ही तो दृग धोए थे?
कालिदास, सच-सच बतलाना!
रति रोई या तुम रोए थे?
 वर्षा ऋतु की स्निग्ध भूमिका
प्रथम दिवस आषाढ़ मास का
देख गगन में श्याम घन-घटा
विधुर यक्ष का मन जब उचटा
खड़े-खड़े तब हाथ जोड़कर
चित्रकूट से सुभग शिखर पर
उस बेचारे ने भेजा था
जिनके ही द्वारा संदेशा
उन पुष्करावर्त मेघों का
साथी बनकर उड़ने वाले
कालिदास, सच-सच बतलाना!
पर पीड़ा से पूर-पूर हो
थक-थक कर औ’ चूर-चूर हो
अमल-धवलगिरि के शिखरों पर
प्रियवर, तुम कब तक सोये थे?
रोया यक्ष कि तुम रोए थे!
कालिदास, सच-सच बतलाना !

जम जाए अगर तो,
सारा ज़माना अपना है I

जीवन के डगर पर,
हर परवाना अपना है।

बिताने कौन आया है,
यहां सदियां हज़ार।

कुछ पल के ही तो,
साथी हैं हम यार।

अपने-अपने वक्त पर,
हम सब
को जाना ही पड़ता है।

तस्मिन्‍काले नयनसलिलं योषितां खण्डिताना
शान्तिं नेयं प्रणयिभिरतो वर्त्‍म भानोस्‍त्‍यजाशु।
प्रालेयास्‍त्रं कमलवदनात्‍सोपि हर्तुं नलिन्‍या:
प्रत्‍यावृत्‍तस्‍त्‍वयि कररुधि स्‍यादनल्‍पाभ्‍यसूय:।।

रात्रि में बिछोह सहनेवाली खंडिता नायिकाओं
के आँसू सूर्योदय की बेला में उनके प्रियतम
पोंछा करते हैं, इसलिए तुम शीघ्र सूर्य का
मार्ग छोड़कर हट जाना, क्योंकि सूर्य भी
कमलिनी के पंकजमुख से ओसरूपी आँसू
पोंछने के लिए लौटे होंगे। तुम्‍हारे द्वारा हाथ
रोके जाने पर उनका रोष बढ़ेगा।

गम्‍भीराया: पयसि सरितश्‍चेतसीव प्रसन्‍ने
छायात्‍मापि प्रकृतिसुभगो लप्‍स्‍यते ते प्रवेशम्।
तस्‍यादस्‍या: कुमुदविशदान्‍यर्हसि त्वं न धैर्या-
न्‍मोधीकर्तु चटुलशफरोद्वर्तनप्रेक्षितानि।।

गम्‍भीरा के चित्‍तरूपी निर्मल जल में तुम्‍हारे
सहज सुन्‍दर शरीर का प्रतिबिम्‍ब पड़ेगा ही।
फिर कहीं ऐसा न हो कि तुम उसके कमल-
से श्‍वेत और उछलती शफरी-से चंचल
चितवनों की ओर अपने धीरज के कारण
ध्‍यान न देते हुए उन्‍हें विफल कर दो।

गच्‍छन्‍तीनां रमणवसतिं योषितां तत्र नक्‍तं
रुद्धालोके नरपतिपथे सूचिभेद्यैस्‍तमोभि:।
सौदामन्‍या कनकनिकषस्निग्‍धया दर्शयोर्वी
तोयोत्‍सर्गस्‍तनितमुखरो मा स्‍म भूर्विक्‍लवास्‍ता:।।

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वहाँ उज्‍जयिनी में रात के समय प्रियतम के
भवनों को जाती हुई अभिसारिकाओं को
जब घुप्‍प अँधेरे के कारण राज-मार्ग पर
कुछ न सूझता हो, तब कसौटी पर कसी
कंचन-रेखा की तरह चमकती हुई बिजली
से तुम उनके मार्ग में उजाला कर देना।
वृष्टि और गर्जन करते हुए, घेरना मत,
क्‍योंकि वे बेचारी डरपोक होती हैं।

तां कस्‍यांचिद~भवनवलभौ सुप्‍तपारावतायां
नीत्‍वा रात्रिं चिरविलसिनात्खिन्‍नविद्युत्‍कलत्र:।
दृष्‍टे सूर्ये पुनरपि भवान्‍वाहयेदध्‍वशेषं
मन्‍दायन्‍ते न खलु सुहृदामभ्‍युपेतार्थकृत्‍या:।।

देर तक बिलसने से जब तुम्‍हारी बिजली
रूपी प्रियतमा थक जाए, तो तुम वह रात्रि
किसी महल की अटारी में जहाँ कबूतर
सोते हों बिताना। फिर सूर्योदय होने पर
शेष रहा मार्ग भी तय करना। मित्रों का
प्रयोजन पूरा करने के लिए जो किसी काम
को ओढ़ लेते हैं, वे फिर उसमें ढील नहीं
करते।

पादन्‍यासक्‍वणितरशनास्‍तत्र लीलावधूतै
रत्‍नच्‍छायाखचितवलिभिश्‍चामरै: क्‍लान्‍तहस्‍ता:।
वेश्‍यास्‍त्‍वत्‍तो नखपदसुखान्‍प्राप्‍य वर्षाग्रबिन्दू –
नामोक्ष्‍यन्‍ते त्‍वयि मधुकरश्रेणिदीर्घान्‍कटाक्षान्।।

वहाँ प्रदोष-नृत्‍य के समय पैरों की ठुमकन
से जिनकी कटिकिंकिणी बज उठती है, और
रत्‍नों की चमक से झिलमिल मूठोंवाली
चौरियाँ डुलाने से जिनके हाथ थक जाते हैं,
ऐसी वेश्‍याओं के ऊपर जब तुम सावन के
बुन्‍दाकड़े बरसाकर उनके नखक्षतों को सुख
दोगे, तब वे भी भौंरों-सी चंचल पुतलियों से
तुम्‍हारे ऊपर अपने लम्‍बे चितवन चलाएँगी।

Amazing 100+ Kalidas Ke Dohe In Hindi

पश्‍चादुच्‍चैर्भुजतरुवनं मण्‍डलेनाभिलीन:
सान्‍ध्‍यं तेज: प्रतिनवजपापुष्‍परक्‍तं दधान:।
नृत्‍यारम्‍भे हर पशुपतेरार्द्र नागाजिनेच्‍छां
शान्‍तोद्वेगस्तिमितनयनं दृ‍ष्‍टभक्तिर्भवान्‍या।।

आरती के पश्‍चात आरम्‍भ होनेवाले शिव के
तांडव-नृत्‍य में तुम, तुरत के खिले जपा
पुष्‍पों की भाँति फूली हुई सन्‍ध्‍या की ललाई
लिये हुए शरीर से, वहाँ शिव के ऊँचे उठे
भुजमंडल रूपी वन-खंड को घेरकर छा जाना।
इससे एक ओर तो पशुपति शिव रक्‍त
से भीगा हुआ गजासुरचर्म ओढ़ने की इच्‍छा
से विरत होंगे, दूसरी ओर पार्वती जी उस
ग्‍लानि के मिट जाने से एकटक नेत्रों से
तुम्‍हारी भक्ति की ओर ध्‍यान देंगी।

भर्तु: कण्‍ठच्‍छविरिति गणै: सादरं वीक्ष्‍यमाण:
पुण्‍यं यायास्त्रिभुवनगुरोर्धाम चण्‍डीश्‍वरस्‍य।
धूतोद्यानं कुवलयरजोगन्धिभिर्गन्‍धवत्‍या-
स्‍तोयक्रीडानिरतयुवतिस्‍नानतिक्‍तै र्मरुद~भि:।।

अपने स्‍वामी के नीले कंठ से मिलती हुई
शोभा के कारण शिव के गण आदर के
साथ तुम्‍हारी ओर देखेंगे। वहाँ त्रिभुवन-
पति चंडीश्‍वर के पवित्र धाम में तुम जाना।
उसके उपवन के कमलों के पराग से
सुगन्धित एवं जलक्रीड़ा करती हुई युवतियों
के स्‍नानीय द्रव्‍यों से सुरभित गन्‍धवती की
हवाएँ झकोर रही होंगी।

अप्‍यन्‍यस्मिञ्जलधर! महाकालमासाद्य काले
स्‍थातव्‍यं ते नयनविषयं यावदत्‍येति भानु:।
कुर्वन्‍संध्‍याबलिपटहतां शूलिन: श्‍लाघनीया-
मामन्‍द्राणां फलमविकलं लप्‍स्‍यते गर्जितानाम्।।

हे जलधर, यदि महाकाल के मन्दिर में
समय से पहले तुम पहुँच जाओ, तो तब
तक वहाँ ठहर जाना जब तक सूर्य आँख से
ओझल न हो जाए।
शिव की सन्‍ध्‍याकालीन आरती के
समय नगाड़े जैसी मधुर ध्‍वनि करते हुए
तुम्‍हें अपने धीर-गम्‍भीर गर्जनों का पूरा फल
प्राप्‍त होगा।

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KALIDAS POEMS IN HINDI WITH MEANING

दीर्घीकुर्वन्‍पटु मदकलं कूजितं सारसानां
प्रत्‍यूषेषु स्‍फुटितकमलामोदमैत्रीकषाय:।
यत्र स्‍त्रीणां ह‍रति सुरतग्‍लानिमंगानुकूल:
शिप्रावात: प्रियतम इव प्रार्थनाचाटुकार:।।

जहाँ प्रात:काल शिप्रा का पवन खिले कमलों
की भीनी गन्‍ध से महमहाता हुआ, सारसों
की स्‍पष्‍ट मधुर बोली में चटकारी भरता
हुआ, अंगों को सुखद स्‍पर्श देकर, प्रार्थना
के चटोरे प्रियतम की भाँति स्त्रियों के
रतिजनित खेद को दूर करता है।

जालोद्गीर्णैरुपचितवपु: केशसंस्‍कारधूपै-
र्बन्‍धुप्रीत्‍या भवनशिखिभिर्दत्‍तनृत्‍योपहार:।
हर्म्‍येष्‍वस्‍या: कुसुमसुरभिष्‍वध्‍वखेदं नयेथा
लक्ष्‍मीं पर्श्‍यल्‍ललितवनितापादरागाद्दितेषु।।

उज्‍जयिनी में स्त्रियों के केश सुवासित
करनेवाली धूप गवाक्ष जालों से बाहर उठती
हुई तुम्‍हारे गात्र को पुष्‍ट करेगी, और घरों
के पालतू मोर भाईचारे के प्रेम से तुम्‍हें नृत्‍य
का उपहार भेंट करेंगे। वहाँ फूलों से
सुरभित महलों में सुन्‍दर स्त्रियों के महावर
लगे चरणों की छाप देखते हुए तुम मार्ग की
थकान मिटाना।

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KALIDAS KAVITA IN HINDI

विश्राम के लिए वहाँ ‘निचले’ पर्वत पर
बसेरा करना जो तुम्‍हारा सम्‍पर्क पाकर खिले
फूलोंवाले कदम्‍बों से पुलकित-सा लगेगा।
उसकी पथरीली कन्‍दराओं से उठती हुई
गणिकाओं के भोग की रत-गन्‍ध पुरवासियों
के उत्‍कट यौवन की सूचना देती है।

विश्रान्‍त: सन्‍ब्रज वननदीतीरजालानि सिञ्च-
न्‍नुद्यानानां नवजलकणैर्यू थिकाजालकानि।
गण्‍डस्‍वेदापनयनरुजा क्‍लान्‍तकर्णोत्‍पलानां
छायादानात्‍क्षणपरिचित: पुष्‍पलावीमुखानाम्।।

विश्राम कर लेने पर, वन-नदियों के किनारों
पर लगी हुई जूही के उद्यानों में कलियों को
नए जल की बूँदों से सींचना, और जिनके
कपोलों पर कानों के कमल पसीना पोंछने
की बाधा से कुम्‍हला गए हैं, ऐसी फूल
चुननेवाली स्त्रियों के मुखों पर तनिक छाँह
करते हुए पुन: आगे चल पड़ना।

पाण्‍डुच्‍छायोपवनवृतय: केतकै: सूचिभिन्‍नै-
नींडारम्‍भैर्गृ ह‍बलिभुजामाकुलग्रामचैत्‍या:।
त्‍वय्यासन्‍ने परिणतफलश्‍यामजम्‍बूवनान्‍ता:
संपत्‍स्‍यन्‍ते कतिपयदिनस्‍थायिहंसा दशार्णा:।।

हे मेघ, तुम निकट आए कि दशार्ण देश में
उपवनों की कटीली रौंसों पर केतकी के
पौधों की नुकीली बालों से हरियाली छा
जाएगी, घरों में आ-आकर रामग्रास खानेवाले
कौवों द्वारा घोंसले रखने से गाँवों के वृक्षों
पर चहल-पहल दिखाई देने लगेगी, और
पके फलों से काले भौंराले जामुन के वन
सुहावने लगने लगेंगे। तब हंस वहाँ कुछ ही
दिनों के मेहमान रह जाएँगे।

तेषां दिक्षु प्रथितविदिशालक्षणां राजधानीं
गत्‍वा सद्य: फलमविकलं कामुकत्‍वस्‍य लब्‍धा।
तीरोपान्‍तस्‍तनितसुभगं पास्‍यसि स्‍वादु यस्‍मा-
त्‍सभ्रूभंगं मुखमिव पयो वेत्रवत्‍याश्‍चलोर्मि।।

उस देश की दिगन्‍तों में विख्‍यात विदिशा
नाम की राजधानी में पहुँचने पर तुम्‍हें अपने
रसिकपने का फल तुरन्‍त मिलेगा – वहाँ तट
के पास मठारते हुए तुम वेत्रवती के तरंगित
जल का ऐसे पान करोगे जैसे उसका
भ्रू-चंचल मुख हो।

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Amazing 100+ Kalidas Ke Dohe In Hindi

महाकवि कालिदास कविता नागार्जुन

कर्तुं यच्‍च प्रभ‍वति महीमुच्छिलीन्‍ध्रामवन्‍ध्‍यां
तच्‍छत्‍वा ते श्रवणसुभगं गर्जितं मानसोत्‍का:।
आकैलासाद्विसकिसलयच्‍छेदपाथेयवन्‍त:
सैपत्‍स्‍यन्‍ते नभसि भवती राजहंसा: सहाया:।।

जिसके प्रभाव से पृथ्‍वी खुम्‍भी की टोपियों
का फुटाव लेती और हरी होती है, तुम्‍हारे
उस सुहावने गर्जन को जब कमलवनों में
राजहंस सुनेंगे, तब मानसरोवर जाने की
उत्‍कंठा से अपनी चोंच में मृणाल के
अग्रखंड का पथ-भोजन लेकर वे कैलास
तक के लिए आकाश में तुम्‍हारे साथी बन
जाएँगे।

आपृच्‍छस्‍व प्रियसखममुं तुग्‍ड़मालिग्‍ड़च शैलं
वन्‍द्यै: पुंसां रघुपतिपदैरकिड़तं मेखलासु।
काले काले भवति भवतो यस्‍य संयोगमेत्‍य
स्‍नेहव्‍यक्तिश्चिरविरहजं मुञ्चतो वाष्‍पमुष्‍णम्।।

अब अपने प्‍यारे सखा इस ऊँचे पर्वत से
गले मिलकर विदा लो जिसकी ढालू चट्टानों
पर लोगों से वन्‍दनीय रघुपति के चरणों की
छाप लगी है, और जो समय-समय पर
तुम्‍हारा सम्‍पर्क मिलने के कारण लम्‍बे विरह
के तप्‍त आँसू बहाकर अपना स्‍नेह प्रकट
करता रहता है।

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अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)

प्रश्न: कालिदास कौन थे और उनके दोहे क्या हैं?
उत्तर: कालिदास एक प्रसिद्ध शास्त्रीय संस्कृत कवि और नाटककार थे। उनके दोहे छोटे छंद हैं जो गहन नैतिक और आध्यात्मिक शिक्षाओं को व्यक्त करते हैं।

प्रश्न: महाकवि कालिदास के दोहे का क्या महत्व है?
उत्तर: कालिदास के दोहे ज्ञान के कालातीत रत्न माने जाते हैं, जो सार्थक और उद्देश्यपूर्ण जीवन जीने के लिए बहुमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करते हैं। वे नैतिक मूल्यों, आध्यात्मिक विकास और नैतिक आचरण को बढ़ावा देते हैं।

प्रश्न: कालिदास ने कितने दोहे लिखे हैं?
उत्तर: कालिदास ने कुछ दोहे लिखे जो अपनी गहराई और सुंदरता के लिए प्रसिद्ध हैं।

प्रश्न: क्या आप कालिदास के दोहे का उदाहरण दे सकते हैं?
उ: कुछ प्रसिद्ध कालिदास के दोहे हैं “क्षमा से शोभति मनुष्य, धर्मन न कोई जाति है,” जिसका अर्थ है कि क्षमा मानवीय गरिमा को बढ़ाती है, धार्मिकता में कोई जाति नहीं है। एक और है “कबीर मन निर्मल भया, जैस गंगा नीर, पछे पाछे हर फिरे, कहत कबीर कबीर,” जिसका अर्थ है कि कबीर का मन पवित्र नदी गंगा के पानी की तरह पवित्र हो गया है, और अब वह भगवान के नाम का जाप करता है।

प्रश्न: कालिदास के दोहे का मुख्य संदेश क्या है?
उत्तर: कालिदास के दोहे का मुख्य संदेश करुणा, दया और नैतिक मूल्यों पर आधारित एक सदाचारी जीवन जीना है। वे आत्म-अनुशासन, सच्चाई और ज्ञान की खोज के महत्व पर जोर देते हैं।

प्रश्न: हम अपने दैनिक जीवन में महाकवि कालिदास के दोहे को कैसे लागू कर सकते हैं?
उत्तर: हम क्षमा, करुणा और नैतिक आचरण के सिद्धांतों का अभ्यास करके अपने दैनिक जीवन में कालिदास के दोहे को लागू कर सकते हैं। हम ज्ञान और आत्म-सुधार की प्यास भी पैदा कर सकते हैं, और एक उद्देश्यपूर्ण और सार्थक जीवन जीने का प्रयास कर सकते हैं।

प्रश्न: महाकवि कालिदास के दोहे के बारे में हमें और जानकारी कहाँ से मिल सकती है?
उ: महाकवि कालिदास के दोहे के बारे में जानकारी देने वाली कई किताबें और वेबसाइट हैं। आप संस्कृत साहित्य के विद्वानों और विशेषज्ञों से उनके अर्थ और महत्व की गहरी अंतर्दृष्टि के लिए भी परामर्श कर सकते हैं।

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Conclusion: कालिदास के दोहे लघु छंदों का एक मूल्यवान संग्रह है जो गहन नैतिक और आध्यात्मिक शिक्षा प्रदान करते हैं। वे क्षमा, करुणा, आत्म-अनुशासन और नैतिक आचरण जैसे गुणों को बढ़ावा देते हैं और ज्ञान और आत्म-सुधार की खोज को प्रोत्साहित करते हैं। इन दोहे में निहित कालातीत ज्ञान हमारे दैनिक जीवन में एक उद्देश्यपूर्ण और सार्थक जीवन जीने के लिए लागू किया जा सकता है। एक प्रसिद्ध शास्त्रीय संस्कृत कवि और नाटककार के रूप में, कालिदास ने अपने दोहे सहित अपने कालातीत और प्रेरक कार्यों के साथ एक स्थायी विरासत छोड़ी है, जो आज भी पाठकों के साथ प्रतिध्वनित होती है और उन्हें प्रेरित करती है।

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