Amazing Vat Savitri Vrat Katha And Vidhi In Hindi | 21 Vrat Samagri

हिंदू धर्म में व्रतों का विशेष महत्व है। ये व्रत भक्ति और साधना का प्रतीक होते हैं, जिन्हें मान्यता के साथ मनाने से मान्यता का फल मिलता है। वाट सावित्री व्रत एक प्रसिद्ध हिन्दू धार्मिक व्रत है, जो महिलाओं द्वारा अद्यापि प्राकृतिक स्वास्थ्य और अपने पति की लंबी आयु के लिए किया जाता है। इस व्रत का आयोजन ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन किया जाता है, जिसे सावित्री आमावस्या भी कहा जाता है। इस लेख में हम आपको आश्चर्यजनक Vat Savitri Vrat Katha And Vidhi In Hindi में विस्तार से बताएंगे और साथ ही व्रत के सामग्री और महत्वपूर्ण तिथियों के बारे में भी जानकारी प्रदान करेंगे।

वट सावित्री व्रत कब है?

वर्षतारीख
202319 मई, Friday
20246 जून, Thursday
202526 मई, Monday
202616 मई, Saturday
20274 जून, Friday
202824 मई, Wednesday
202911 जून, Monday
203031 मई, Friday
203120 मई, Tuesday
20327 जून, Monday

वट सावित्री व्रत कब मनाया जाता है?

वट सावित्री व्रत ज्येष्ठ मास की अमावस्या के दिन मनाया जाता है। यह व्रत हिन्दू महिलाओं द्वारा मान्यता प्राप्त है और इसे वृक्ष की आत्मा और भगवान शिव की शक्ति की आराधना के रूप में माना जाता है। मुख्य रूप से यह व्रत सावित्री देवी के भर्ता, सती सावित्री, की उत्तम पतिव्रता और दीर्घायु के लिए प्रार्थना करने के लिए मनाया जाता है। यह व्रत मुख्य रूप से उत्तर भारतीय राज्यों में मान्यता प्राप्त है, लेकिन देश के विभिन्न हिस्सों में इसे मनाया जाता है।

वट सावित्री व्रत क्यों किया जाता है?

वट सावित्री व्रत महिलाओं द्वारा भगवान शिव और सावित्री देवी की पूजा-अर्चना के रूप में किया जाता है। इस व्रत का महत्व विवाहित महिलाओं के पति की लंबी आयु और खुशहाली की कामना करने में समाहित है। इसकी प्रारंभिक कथा सती सावित्री के उदाहरण के आधार पर है, जिन्होंने अपने पति की जीवन लंबी करने के लिए भगवान यमराज से व्रत लिया था। व्रत के दौरान, महिलाएं पुण्य कार्यों का आचरण करती हैं, विशेष रूप से वट वृक्ष की पूजा करती हैं और भगवान शिव-पार्वती और सावित्री-सती की कथाएं सुनती हैं। यह व्रत महिलाओं के पतिव्रता, प्रेम और समर्पण की प्रतीक है और सुख-शांति की कामना करता है।

Vat Savitri Vrat Katha And Vidhi In Hindi

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Vat Savitri Vrat Katha And Vidhi In Hindi

वट सावित्री अमावस्या व्रत कथा

प्रसिद्ध तत्त्वज्ञानी अश्वपति भद्र देश के राजा थे। उनको संतान सुख नहीं प्राप्त था। इसके लिए उन्होंने 18 वर्ष तक कठोर तपस्या की, जिसके उपरांत सावित्री देवी ने कन्या प्राप्ति का वरदान दिया। इस वजह से जन्म लेने के बाद कन्या का नाम सावित्री रखा गया। कन्या बड़ी होकर बहुत ही रूपवान हुई। योग्य वर न मिलने की वजह से राजा दुखी रहते थे।

राजा ने कन्या को खुद वर खोजने के लिए भेजा। जंगल में उसकी मुलाकात सत्यवान से हुई। द्युमत्सेन के पुत्र सत्यवान को पति रूप में स्वीकार कर लिया। इस घटना की जानकारी के बाद ऋषि नारद जी ने अश्वपति से सत्यवान की अल्प आयु के बारे में बताया। माता-पिता ने बहुत समझाया, परन्तु सावित्री अपने धर्म से नहीं डिगी। जिनके जिद्द के आगे राजा को झुकना पड़ा।

सावित्री और सत्यवान का विवाह हो गया। सत्यवान बड़े गुणवान, धर्मात्मा और बलवान थे। वे अपने माता-पिता का पूरा ख्याल रखते थे। सावित्री राजमहल छोड़कर जंगल की कुटिया में आ गई थीं, उन्होंने वस्त्राभूषणों का त्याग कर अपने अंधे सास-ससुर की सेवा करती रहती थी।

सत्यवान् की मृत्यु का दिन निकट आ गया। नारद ने सावित्री को पहले ही सत्यवान की मृत्यु के दिन के बारे में बता दिया था। समय नजदीक आने से सावित्री अधीर होने लगीं। उन्होंने तीन दिन पहले से ही उपवास शुरू कर दिया। नारद मुनि के कहने पर पितरों का पूजन किया।

प्रत्येक दिन की तरह सत्यवान भोजन बनाने के लिए जंगल में लकड़ियां काटने जाने लगे, तो सावित्री उनके साथ गईं। वह सत्यवान के महाप्रयाण का दिन था। सत्यवान लकड़ी काटने पेड़ पर चढ़े, लेकिन सिर चकराने की वजह से नीचे उतर आये। सावित्री पति का सिर अपनी गोद में रखकर उन्हें सहलाने लगीं।

तभी यमराज आते दिखे जो सत्यवान के प्राण लेकर जाने लगे। सावित्री भी यमराज के पीछे-पीछे जाने लगीं। उन्होंने बहुत मना किया परंतु सावित्री ने कहा, जहां मेरे पतिदेव जाते हैं, वहां मुझे जाना ही चाहिये। बार-बार मना करने के बाद भी सावित्री पीछे-पीछे चलती रहीं।

सावित्री की निष्ठा और पति परायणता को देखकर यम ने एक-एक करके वरदान में सावित्री के अंधे सास-ससुर को आंखें दी, उसका खोया हुआ राज्य दिया और सावित्री को देखने के लिए कहा। वह लौटे कैसे? सावित्री के प्राण तो यमराज लिये जा रहे थे।

यमराज ने फिर कहा कि सत्यवान् को छोडकर चाहे जो मांगना चाहे मांग सकती हो, इस पर सावित्री ने 100 संतानों और सौभाग्यवती का वरदान मांगा। यम ने बिना विचारे प्रसन्न होकर तथास्तु बोल दिया। वचनबद्ध यमराज आगे बढ़ने लगे।

सावित्री ने कहा कि प्रभु मैं एक पतिव्रता पत्नी हूं और आपने मुझे पुत्रवती होने का आशीर्वाद दिया है। यह सुनकर यमराज को सत्यवान के प्राण छोड़ने पड़े। सावित्री उसी वट वृक्ष के पास आ गईं, जहां उसके पति का मृत शरीर पड़ा था।

सत्यवान जीवित हो गए, माता-पिता को दिव्य ज्योति प्राप्त हो गई और उनका राज्य भी वापस मिल गया। इस प्रकार सावित्री-सत्यवान चिरकाल तक राज्य सुख भोगते रहे। अतः पतिव्रता सावित्री की तरह ही अपने सास-ससुर का उचित पूजन करने के साथ ही अन्य विधियों को प्रारंभ करें। वट सावित्री व्रत करने और इस कथा को सुनने से व्रत रखने वाले के वैवाहिक जीवन के सभी संकट टल जाते हैं।

Vat Savitri Vrat Katha And Vidhi In Hindi

वट सावित्री व्रत की पूजन सामग्री

यहां वट सावित्री व्रत की पूजन सामग्री की सूची है, जो आपको इस व्रत की पूजा के लिए आवश्यक हो सकती है, और इनका उपयोग निम्नलिखित उद्देश्यों के लिए किया जाता है:

  • बरगद के पत्ते: वट वृक्ष के पत्ते पतिव्रता का प्रतीक होते हैं और इसलिए पूजा के दौरान उन्हें प्रदर्शित किया जाता है ताकि पत्नी अपने पति के लिए सौभाग्य और दीर्घायु की कामना कर सके।
  • सावित्री व्रत कथा पुस्तक: सावित्री व्रत की कथा को पढ़ने के लिए। इस कथा में सावित्री महिला शक्ति के प्रतीक के रूप में प्रतिष्ठित हैं।
  • रोली और कुमकुम: पूजा के लिए रोली और कुमकुम का उपयोग किया जाता है। इसे पूजा स्थल और कलश पर लगाने के लिए उपयोग किया जाता है।
  • दीपक: पूजा में उपयोग के लिए एक दीपक। इसे पूजा स्थल पर स्थापित किया जाता है और यह दीपक प्रकाशित करके पूजा का आदर्श वातावरण बनाता है।
  • सुपारी: पूजा में सुपारी का उपयोग यज्ञोपवीत के साथ किया जाता है। सुपारी को अर्पण करके व्रत की संकल्पना की जाती है।
  • फूलों की माला: व्रत में फूलों की माला का उपयोग किया जाता है। यह माला माता सावित्री की पूजा के दौरान मन्त्र जप के लिए प्रयोग की जाती है।
  • चौकी या आसन: पूजा के लिए एक चौकी या आसन की आवश्यकता होती है। इसे पूजा स्थल पर स्थापित करके माता सावित्री के सामने आसन बनाया जाता है।
  • थाली: पूजा की सामग्री को एक थाली में रखने के लिए एक थाली की आवश्यकता होती है। यह थाली पूजा सामग्री को साझा करने के लिए उपयोगी होती है।
  • फल, फूल और पत्रों की चादर: पूजा के लिए फल, फूल और पत्रों की चादर की आवश्यकता होती है। इन्हें पूजा स्थल पर बिछाकर माता सावित्री को आर्पित किया जाता है।
  • गंगाजल: पूजा के लिए पवित्र गंगाजल की आवश्यकता होती है, जिसे पूजा के दौरान उपयोग किया जाता है। गंगाजल को पूजा स्थल पर छिड़ककर पवित्रता का आदर्श प्रतीक बनाया जाता है।
  • व्रत कथा बुक: व्रत कथा को पढ़ने के लिए एक व्रत कथा बुक की आवश्यकता होती है। इसमें सावित्री व्रत की महत्वपूर्ण व्रत कथा और मंत्र होते हैं।
  • पूजा के लिए विभिन्न प्रकार के फल: पूजा में विभिन्न प्रकार के फलों का उपयोग किया जाता है, जैसे कि नारियल, बनाना, आम, खजूर, आदि। ये फल पूजा के दौरान माता सावित्री को अर्पित किए जाते हैं।
  • भोजन सामग्री: व्रत के दौरान भोजन के लिए सावित्री माता को अर्पित किया जाने वाला सामग्री, जैसे कि व्रत के विधान के अनुसार व्रती खाने के लिए उबले हुए चावल, काले चने, दही, फल, मिश्रित पकवान, आदि।
  • पान, सुपारी और इलायची: पूजा के दौरान पान, सुपारी और इलायची को भोग के रूप में प्रस्तुत किया जाता है। इन्हें माता सावित्री के लिए आदर्श मन्दिर बनाने के लिए अर्पित किया जाता है। इनका आदर्श चित्रण पूजा के दौरान देवी की अवस्था और मान्यता को प्रतिष्ठित करता है।
  • धूप और दीप: पूजा के लिए धूप और दीपों का उपयोग किया जाता है। इन्हें पूजा स्थल पर प्रज्ज्वलित करके आराध्या देवी के समक्ष चढ़ाया जाता है।
  • कपूर और अगरबत्ती: पूजा के दौरान कपूर और अगरबत्ती का उपयोग किया जाता है। इनकी धूप विशेषता से माता सावित्री के आग्रह और आशीर्वाद को समर्पित किया जाता है।
  • गंध: पूजा के लिए गंध का उपयोग किया जाता है, जैसे कि चंदन और केशर। यह ध्यान और मनोयोग को स्थापित करने के लिए प्रयोग किया जाता है।
  • पानी: पूजा के दौरान पानी का उपयोग किया जाता है। यह पवित्र स्रोत के रूप में उपयोग किया जाता है और पूजा में स्नान और आरती के लिए प्रयोग किया जाता है।
  • यात्रा: व्रत के दौरान पूजा स्थल के लिए यात्रा करने के लिए सामग्री, जैसे कि धार्मिक किताब, पूजा सामग्री रखने के लिए एक यात्रा की थैली आवश्यक होती है। इस थैली में सभी पूजा सामग्री को सुरक्षित रखा जाता है और इसे पूजा स्थल तक ले जाया जाता है।
  • प्रशाद: पूजा के दौरान बनाया गया प्रशाद माता सावित्री को समर्पित किया जाता है। यह आपके भोजन के रूप में प्राप्त किया जा सकता है और इसे व्रत के बाद बांटा जा सकता है।
  • गुलाबजल: पूजा के दौरान गुलाबजल का उपयोग भी किया जाता है। यह माता सावित्री को सुगंधित करने और पूजा का वातावरण शुद्ध करने के लिए प्रयोग किया जाता है।

Vat Savitri Vrat Pooja Vidhi In Hindi

वट सावित्री व्रत उद्यापन विधि निम्नलिखित तरीके से की जाती है:

Vat Savitri Vrat Katha And Vidhi In Hindi
  • सुबह घर की सफाई कर नित्य कर्म से निवृत्त होकर स्नान करें।
  • पवित्र जल का पूरे घर में छिड़काव करें।
  • बांस की टोकरी में सप्त धान्य भरकर ब्रह्मा की मूर्ति की स्थापना करें।
  • ब्रह्मा के बाएं भाग में सावित्री की मूर्ति स्थापित करें।
  • एक और दूसरी टोकरी में सत्यवान तथा सावित्री की मूर्तियों की स्थापना करें। इन टोकरियों को वट वृक्ष के नीचे ले जाकर रखें।
  • ब्रह्मा तथा सावित्री का पूजन करें।
  • सावित्री और सत्यवान की पूजा करते हुए बड़ की जड़ में जल दें।
  • पूजा में जल, मौली, रोली, कच्चा सूत, भिगोया हुआ चना, फूल तथा धूप का प्रयोग करें।
  • जल से वटवृक्ष को सींचकर उसके तने के चारों ओर कच्चा धागा लपेटकर तीन बार परिक्रमा करें।
  • बड़ के पत्तों के गहने पहनकर वट सावित्री की कथा सुनें।
  • भीगे हुए चनों का बायना निकालकर, नकद रुपए रखकर अपनी सास के पैर छूकर उनका आशीष प्राप्त करें। यदि सास वहां मौजूद न हो, तब उन तक पहुंचने के लिए एक बायना तैयार करें।
  • पूजा समाप्ति पर, ब्राह्मणों को वस्त्र और फलादि वस्तुएं बांस के पात्र में रखकर दान करें।
  • इस व्रत में सावित्रीसत्यवान की पुण्य कथा का श्रवण करना न भूलें। इस कथा को पूजा करते समय दूसरों को भी सुनाएं।

वट सावित्री व्रत आरती

अश्वपती पुसता झाला।। नारद सागंताती तयाला।।
अल्पायुषी सत्यवंत।। सावित्री ने कां प्रणीला।।
आणखी वर वरी बाळे।। मनी निश्चय जो केला।।
आरती वडराजा।।1।।
दयावंत यमदूजा। सत्यवंत ही सावित्री।
भावे करीन मी पूजा। आरती वडराजा ।।धृ।।
ज्येष्ठमास त्रयोदशी। करिती पूजन वडाशी ।।
त्रिरात व्रत करूनीया। जिंकी तू सत्यवंताशी।
आरती वडराजा ।।2।।
स्वर्गावारी जाऊनिया। अग्निखांब कचळीला।।
धर्मराजा उचकला। हत्या घालिल जीवाला।
येश्र गे पतिव्रते। पती नेई गे आपुला।।
आरती वडराजा ।।3।।
जाऊनिया यमापाशी। मागतसे आपुला पती। चारी वर देऊनिया।
दयावंता द्यावा पती।आरती वडराजा ।।4।।
पतिव्रते तुझी कीर्ती। ऐकुनि ज्या नारी।।
तुझे व्रत आचरती। तुझी भुवने पावती।।
आरती वडराजा ।।5।।
पतिव्रते तुझी स्तुती। त्रिभुवनी ज्या करिती।। स्वर्गी पुष्पवृष्टी करूनिया।
आणिलासी आपुला पती।। अभय देऊनिया। पतिव्रते तारी त्यासी।।आरती वडराजा ।।6।।

वट सावित्री व्रत नियम

वट सावित्री व्रत एक प्रमुख हिन्दू व्रत है जो सावित्री देवी की पूजा एवं व्रत के माध्यम से सतीत्व एवं पतिव्रता की महिलाओं की शक्ति और समर्पण को प्रतिष्ठित करता है। इस व्रत के नियम निम्नलिखित हो सकते हैं:

Vat Savitri Vrat Katha And Vidhi In Hindi
  • व्रत आरंभ करने का समय: यह व्रत वैषाख मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि (त्रितीया) से शुरू होता है और चतुर्दशी तिथि तक चलता है।
  • व्रत की संज्ञा: इस व्रत को “सावित्री व्रत” या “वट सावित्री व्रत” के नाम से जाना जाता है।
  • उपवास: व्रत के दौरान व्रती महिलाएं निराहार (फल, सब्जी, अनाज आदि का त्याग करके) रहती हैं और पानी भी पीने में सीमित रहती हैं। कुछ व्रती विशेष रूप से निराहार उपवास भी रखती हैं।
  • पूजा का विधान: सावित्री देवी की मूर्ति या तस्वीर को ध्यान में रखते हुए व्रती महिलाएं पूजा करती हैं। इसमें दीप, फूल, रोली, अक्षत, धूप, नैवेद्य आदि का उपयोग किया जाता है।
  • मंत्र जाप: व्रत के दौरान महिलाएं चौथे व्यंजन स्थान पर माता सावित्री के गायत्री मंत्र का जाप करती हैं। मंत्र जाप के दौरान व्रती महिलाएं मन्त्र के उच्चारण में लगी रहती हैं और माता सावित्री की कृपा एवं आशीर्वाद की प्रार्थना करती हैं।
  • वट वृक्ष की पूजा: व्रत के दौरान व्रती महिलाएं वट वृक्ष की पूजा करती हैं। इसके लिए, वट वृक्ष के पास जाते हुए व्रती महिलाएं उसके तने को अभिषेक करती हैं, तिलक लगाती हैं और पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य आदि से उसे पूजती हैं।
  • सावित्री कथा का पाठ: व्रत के दौरान सावित्री व्रती महिलाएं सावित्रीसत्यवान की पुण्य कथा का पाठ करती हैं। इसके माध्यम से व्रती महिलाएं उनकी उत्कृष्टता, साहसिकता और पतिव्रता के गुणों का मानन करती हैं।
  • दान: व्रत समाप्ति पर व्रती महिलाएं ब्राह्मणों को वस्त्र, फल, अन्नादि वस्तुएं दान करती हैं। इससे व्रती महिलाओं को आशीर्वाद प्राप्त होता है और धर्मिक दायित्व का निर्वाह होता है।

मान्यता अनुसार, व्रत के दिन एक गोल नंदी बना सकते हैं। इसके लिए, एक छोटे गोल में जल भरें और उसे एक छोटे पत्थर के साथ ढक दें। इस पत्थर को आप वट वृक्ष के पास या पूजा स्थल पर रख सकते हैं। यह गोल नंदी आपकी पूजा को शुभ बनाने में मदद करेगा।

कृपया ध्यान दें कि यह सुझाव ज्योतिष या पौराणिक विधानों के आधार पर नहीं है, और इसका कोई प्रमाणिक स्रोत नहीं है। यह एक लोकप्रिय परंपरागत सुझाव है, जिसे आप अपने विश्वास और आदतों के अनुसार अनुसरण कर सकते हैं। सावधानी बरतें और अपने संबंधित आध्यात्मिक गुरु या पंडित से परामर्श लें।

वट सावित्री व्रत में क्या खाना चाहिए?

  • पानी का ज्यादा मात्रा में सेवन करे: वट सावित्री व्रत पर, बहुत सारा पानी पीना महत्वपूर्ण है क्योंकि जब आप नहीं खाते हैं, तो आपका शरीर थक सकता है और ऊर्जा खो सकता है। पीने का पानी आपकी ऊर्जा को बनाए रखने में मदद करता है।
  • काले चनो का सेवन करे: वट सावित्री व्रत के दौरान काले चने खाना अच्छा होता है। इसे बनाने के लिए अपनी पसंद के काले चने चुनें और रात भर पानी में भिगो दें। सुबह काले चने निकालकर एक थाली में पूजा के लिए रख दें। पूजा के बाद आप इसे खा सकते हैं या फिर इसका इस्तेमाल सब्जी बनाने में भी कर सकते हैं।
  • पूरी और पुए का सेवन करे: वट सावित्री व्रत के दौरान पूरी और पुआ खाने की सलाह दी जाती है। पुआ बनाने के लिए आप मैदा, मेवे और चीनी को एक साथ मिलाकर तेल में तल लें। फिर, खाने से पहले पुए को बरगद के पेड़ पर चढ़ाया जाता है।
Vat Savitri Vrat Katha And Vidhi In Hindi
  • आम का सेवन करे: वट सावित्री व्रत के दौरान कुछ खास खाद्य पदार्थों का सेवन करना जरूरी होता है। इन्हीं खाद्य पदार्थों में से एक है आम का मुरब्बा, जिसे आप कच्चे आम को उबालकर उसमें चीनी या गुड़ डालकर बना सकते हैं। प्रार्थना समाप्त करने के बाद, आप आम के मुरब्बे का एक स्वादिष्ट व्यंजन के रूप में आनंद ले सकते हैं।
  • खरबूजे का सेवन करे: वट सावित्री व्रत के दौरान, खरबूजा खाना एक अच्छा विचार है क्योंकि यह इस विशेष दिन के लिए वास्तव में महत्वपूर्ण है।
  • चाय या ग्रीन टी का सेवन करे: वट सावित्री व्रत के दौरान आप चाय या ग्रीन टी पी सकते हैं। अगर आप नियमित चाय पीना चाहते हैं, तो भी ठीक है, लेकिन इसमें कुछ भी न मिलाएं और बाद में पिएं।
  • भीगे बादाम का सेवन करे: वट सावित्री व्रत में आप चाहें तो रात भर पानी में भिगोकर रखे हुए बादाम खा सकते हैं। सोने से पहले बस बादाम को पानी में डाल दें और अगले दिन आप इन्हें खा सकते हैं।

वट सावित्री व्रत त्योहार कहाँ मनाया जाता है?

वट सावित्री व्रत त्योहार भारत में विभिन्न क्षेत्रों में मान्यता प्राप्त है, लेकिन इसे प्रमुखतः उत्तर भारतीय राज्यों में मनाया जाता है। इस व्रत की महत्त्वपूर्ण स्थली उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, मध्य प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा, पंजाब, छत्तीसगढ़, और दिल्ली है। यहां की सावित्री देवी मंदिर और स्थलों पर यह त्योहार विशेष धूमधाम के साथ मनाया जाता है।

Vat Savitri Vrat Katha And Vidhi In Hindi

उत्तर भारत में, बृज और मथुरा जैसे स्थानों पर वट सावित्री व्रत को बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है। वहां की महिलाएं भगवान शिव और सावित्री देवी की पूजा करती हैं और वट वृक्ष के आसपास पूजा करती हैं। सावित्री व्रत के दौरान मठों और मंदिरों में विशेष पूजा अर्चना, कथा पाठ और सावित्री व्रत के नियमों का पालन किया जाता है। वट सावित्री व्रत भारतीय सामाजिक संस्कृति में महिलाओं की पतिव्रता और परिवार के लिए प्रेम का प्रतीक माना जाता है।

लगातार पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)

Q1 वट सावित्री व्रत क्या है?
Ans: वट सावित्री व्रत एक प्रमुख हिंदू त्योहार है जिसे पतिव्रत पत्नियों के द्वारा मनया जाता है। इस व्रत का उद्देष्य पति की लंबी उमर एवं उनकी खुशी के लिए व्रत का आचारण करना होता है।

Q2 वट सावित्री व्रत कब और क्यों मनया जाता है?
Ans: वट सावित्री व्रत ज्येष्ठ अमावस्या या पूर्णिमा के दिन मनया जाता है। इस व्रत का उद्देश्य सावित्री माता की तिवर तपस्या एवं सतीत्व भावना को याद कर पतिव्रत पत्नियों के लिए मार्गदर्शन करना है।

Q3 वट सावित्री व्रत कथा क्या है?
Ans: वट सावित्री व्रत कथा के अनुसार, सावित्री और सत्यवान नमक पति पत्नी की कथा सुनायी जाती है। इस कथा में सावित्री माता ने भगवान यमराज से अपने पति की प्राण बचने के लिए तपस्या की, और अपने पति की मौत के समय भगवान यमराज से वरदान मांगा। इस कथा के प्रमुख तत्व को याद करके व्रत का आचारण किया जाता है।

Q4 वट सावित्री व्रत की विधि क्या है?
Ans: वट सावित्री व्रत की विधि में, महिला व्रत के दिन सवेरे घर की सफाई करें, स्नान करें और सुंदर साज-धज कर व्रत का आरंभ करें। फिर व्रत की कथा का पाठ करें और सावित्री माता, वट वृक्ष, और पति-पत्नी की मूर्तियों की स्थापना करें। व्रत करने वाली महिलाएँ वट वृक्ष के नीचे बैठक करें मंत्र जपे और भक्ति भाव से पूजा करें। इसके बाद, सावित्री और सत्यवान की पूजा के प्रसाद के रूप में जल, फूल, कच्चा सूत, भिगोया हुआ चना, रोली, मौली, और धूप का प्रयोग करें।

Q5 वट सावित्री व्रत के दौरा क्या खाना चाहिए?
Ans: वट सावित्री व्रत के दौरन, व्रत करने वाली महिलाएँ निर्जल उपवास (बिना पानी पिया) रखती हैं। व्रत का पराना अगले दिन के सूर्योदय के समय किया जाता है। पराना के समय, पानी, फल, खीर, दही, मिठाई, और व्रत के अनुकूल भोजन का सेवन किया जाता है।

Q6 वट सावित्री व्रत किस जगह मनया जाता है?
Ans: वट सावित्री व्रत को घर में, मंदिरों में या वट वृक्ष के पास मनया जाता है। वट वृक्ष के पास व्रत करने का महत्व है क्योंकि वट वृक्ष सावित्री माता की शक्ति और तपस्या का प्रतीक है।

Disclaimer: Vat Savitri Vrat Katha And Vidhi In Hindi में प्रदान की गई जानकारी सामान्य जानकारी के लिए है। इसके अलावा, व्रत कथा और विधि के लिए संबंधित धार्मिक नेताओं और विशेषज्ञों की सलाह लेने की सलाह दी जाती है। व्रत का पालन या संबंधित कोई धार्मिक कार्य करने से पहले, आपको अपने आचार्य या पंडित से सलाह लेनी चाहिए। हम नियमित धार्मिक परंपराओं और प्रथाओं का सम्मान करते हैं और किसी भी तरह की नुकसान या हानि के लिए जिम्मेदार नहीं है।

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