हरिद्वार उत्तराखंड के चार पवित्र चारधाम यात्रा का प्रवेश द्वार भी है | यह भगवान शिव की भूमि और भगवान विष्णु की भूमि भी है। इसे सत्ता की भूमि के रूप में भी जाना जाता है |
मायापुरी शहर को मायापुरी, गंगाद्वार और कपिलास्थान नाम से भी मान्यता प्राप्त है और वास्तव में इसका नाम “गेटवे ऑफ़ द गॉड्स” है ।
यह पवित्र शहर भारत की जटिल संस्कृति और प्राचीन सभ्यता का खजाना है | हरिद्वार शिवालिक पहाडियों के कोड में बसा हुआ है| “हरिद्वार” का शाब्दिक अर्थ “हरी तक पहुचने का द्वार” है|
प्रसिद्ध तीर्थ स्थान “बद्रीनारायण” तथा “केदारनाथ” धाम “भगवान विष्णु” एवम् “भगवान शिव “ के तीर्थ स्थान का रास्ता (मार्ग) हरिद्वार से ही जाता है |
इसलिए इस जगह को “हरिद्वार” तथा “हरद्वार” दोनों ही नामों से संबोधित किया जाता है|महाभारत के समय में हरिद्वार को “गंगाद्वार” नाम से वयक्त किया गया है|
हरिद्वार का प्राचीन पौराणिक नाम “माया” या “मायापुरी” है | जिसकी सप्तमोक्षदायिनी पुरियो में गिनती की जाती है | हरिद्वार का एक भाग आज भी “मायापुरी” के नाम से प्रसिद्ध है |
यह भी कहा जाता है कि पौराणिक समय में समुन्द्र मंथन में अमृत की कुछ बुँदे हरिद्वार में गिर गयी थी | इसी कारण हरिद्वार में “कुम्भ का मेला” आयोजित किया जाता है |
बारह वर्ष में मनाये जाने वाला “कुम्भ के मेले ” का हरिद्वार एक महत्वपूर्ण स्थान है | हरिद्वार में ऋषि कपिल मुनि ने तपस्या की थी | इसलिए हरिद्वार को “कपिलास्थान” नाम से संबोधित किया जाता है |
महाभारत में हरिद्वार को 'गंगाद्वार' कहा गया है, क्योंकि यहां पहाड़ियों से निकल कर भागीरथी गंगा पहली बार मैदानी क्षेत्र में आती हैं।
हरिद्वार का प्राचीन पौराणिक नाम 'माया' या 'मायापुरी' है, जिसकी सप्त मोक्षदायिनी पुरियों में गणना की जाती थी।हरिद्वार में ही राजा धृतराष्ट्र के मंत्री ने मैत्री मुनि के यहां अध्ययन किया था।
हर की पौडी के पीछे के बलवा पर्वत की चोटी पर सर्पों की देवी मनसा देवी का मंदिर बना है। देवी मनसा देवी की एक प्रतिमा के तीन मुख और पांच भुजाएं हैं जबकि अन्य प्रतिमा की आठ भुजाएं हैं।
हरिद्वार में भारत के प्रमुख शक्तिपीठों में एक माया देवी का मंदिर है। यहां माता सती का हृदय और नाभि गिरे थे। मंदिर के बगल में 'आनंद भैरव का मंदिर' भी है।